सज़ा

फिर आज तुझसे बातों का मन किया,
फिर आज बोझ है दिल पर मेरे।
तुमहारी कोई खबर नहीं, साथिया,
पर तुम सुनो दर्द, गुजरे वक़्त का मेरे।
सब ऋतुओं ने है वक़्त बिताया
मुझको समझाने को साथ मेरे,
जेस्ठ ने पहले बहुत जलाया,
पर तेरी यादों को ना जला सके,
फिर आसाड़ो ने भी जोर लगाया,
इक याद को भी तोड ना सके।
श्रावण भी आंखों से बह गए,
पर तस्वीर तेरी मिटा ना सके।
पर सुनो,
तुम मेरी फ़िकर मत करना,
हो सके तो मेरा इन्तजार करना,
जब होगी सज़ा खत्म मेरी मोहब्बत की,
होगी हिम्मत फिर तुमसे नजरें मिलाने की।
हाल ए दिल तब अपना बयां करूंगा,
इक गुजारिश आखिरी तुमसे करूंगा,
देना मुझे कज़ा तुम अपनी बाहों में,
और फिर कभी मुझसे प्यार ना करना।।
और फिर कभी मुझसे प्यार ना करना।।

आशू